My bitter experience looking for a job | नौकरी की तलाश का मेरा कड़वा अनुभव
I have faced many difficulties in my life, whether it was to study after twelfth or going out of the house or learning the computer or making any choice for myself. All these battles were with the family and society.
But now, one more difficulty came in front of me. I remember looking for a job between December 2017 to February 2018. Every time I tried I only got disappointment, but I did not want to apply online for a job. I was worried about getting cheated. But finally, I took the risk because I did not want to feel restricted within the house anymore.
Three months had passed. Not having a job, I do not feel good at home, it seemed I had lost my freedom. People began to ridicule that even educated people are unable to find jobs. Well, what can we say about people. They will always say what they want. I also asked people I knew for help to find a job, but there was no vacancy anywhere. In some places, they needed excellent English speaking skills. I was slowly getting tired, it seemed as if its best to listen to the family and stay at home. But I wanted to work for myself. I used to go to a lot of places to give interviews, and would not go to some place because I did not have good clothes to wear. Borrowing from friends was always a solution, so I used to borrow clothes too.
Meanwhile, I received a work offer from a call center. But I refused because I did not feel the place was right. I started applying for jobs again. Me and my friend finally filled out the online form for job application.
Through these online applications, we were called for an interview. But this job was also in a call center. When we went to the interview, our interview also happened together. After the interview, we were asked for some money, about 500 rupees. We had only the bus fare at that time. But the job seemed good and the salary was fair, so we thought what is the big deal in giving some money. They asked us 1000 rupees more for training, and we both said we will bring it the next day. We went the next day, deposited the money and we were given the address of the place where we would be training. On Sunday when we went for training, there were more than 200 people there for the same training. We gave the 1000 rupees and started tranning. A lot of people went back because they did not feel it was right to get a job by paying them money. But we needed a job badly.
After the training, we were given the address of the office where our job was to start. The next day, I and my friends arrived at the office before time. 18 more people were there. Our three-day training took place and after that, we were put in to take calls. There was a lot to learn in this training. But that office was nothing like an office; the bathroom looked as if it was not cleaned for 10 years.
After three days of training, we got the login IDs. After that, we gradually started calling. The first day was terrible because my ears were in a bad shape due to attending more than 300 calls. We got a lunch break of just 30 minutes during the 9 hours of work. We could not go to the toilet much, 'Sir' would become angry. He used to say that you can not even miss a minute's call. And he kept watching with the camera all the time. If he saw something he did not like, he would gather all of us and shout at us.
I felt sorry to see his mentality as he used to make the people feel every moment that could kick us out of our jobs. And he used to tell us repeatedly that 'I am the boss of this place, if I am happy you will be happy too'.
It was common to ridicule people every day there. But when I and some of my colleagues asked for a job letter, they took out a printout for us to sign, on which was written "No Target, No Salary". One evening, I met a senior employee at the bus stand. She told that she has been working for two months but she had not received any salary, so she was also leaving the job. I worked only on a few days in this job because the target just could not be completed.
During the time I worked there, I could see that this place had no respect for women employees. They believed that married women need many leaves because she has to take care of her husband or child. There was not even a toilet that I could use with dignity. Above all, there were constant verbal abuses at employees. That's why I took my own decision that even if the salary is less, I would work in a place where women are respected equally.
In our society, girls are not allowed to make progress, whether it is at home or school or workplace. Many girls like me cross a lot of difficulties in life to study, then fight at home to work outside, and then go to such workplaces and give up. Because we get tired of fighting, we lose heart and accept defeat. The day when such mindsets will change, equality and equality will be possible for girls too.
My dream is that I become a lawyer in the future so that I can bring change in my society with positive thinking. And I'll definitely make changes.
- Vineeta
(Vineeta had left FAT to try a job outside. Today Vineeta has rejoined FAT and is working as a Program Trainee)
मैंने अपनी जिंदगी में कई मुश्किलों का सामना किया है, चाहे वो बारहवीं के बाद पढ़ाई हो या फिर घर से बाहर जाकर कंप्यूटर सीखना रहा हो या अपने लिए चुनाव करना हो। ये सब लड़ाई तो परिवार व समाज के साथ था।
लेकिन अब एक और मुश्किल की मेरे सामने आई थी। मुझे याद है दिसम्बर 2017 से फरवरी 2018 तक नौकरी की तलाश में थी। हर बार निराशा ही हाथ लगी, लेकिन मैंने न चाहते हुए भी नौकरी के लिए ऑनलाइन आवेदन दिया। एक पल को लगा की अगर धोखा हो गया तो। लेकिन मैंने रिस्क लिया क्योंकि मैं अब और घर में बैठ कर बंदी महसूस नहीं करना चाहती थी।
तीन महीने बीत चुके थे। नौकरी न होने के कारण घर पर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता, ऐसा लगता की मैं अपनी आज़ादी खो चुकी हूँ। लोग तक कहने लगे थे की पढ़े -लिखे को जॉब नहीं मिल पा रही है। खेर लोगो का क्या, वो तो कहते ही रहेंगे। मैंने अपने जानकार लोगो से भी अपने नौकरी की बात की लेकिन कहीं भी वैकेंसी खाली नहीं थे। कहीं फर्राटेदार इंग्लिश की जरूरत थी। मैं धीरे -धीरे टूटती सी जा रही थी, मानो ऐसा लग रहा था की परिवार की बात सुन कर घर पर ही बैठ जाओ। लेकिन खुद के लिए काम करना चाहती थी। काफी जगह इंटरव्यू देने जाती और कुछ जगह तो इसलिए नहीं जाती क्योंकि ढंग के कपड़े नहीं होते। लेकिन दोस्तों से उधार चलता था, तो कपडे भी उधार ले आती।
इसी बीच एक काम का ऑफर आया, कॉल सेंटर का। लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि वो जगह मुझे सही नहीं लगी और फिर मैं दोबारा से जॉब के लिए अप्लाई करने लगी। मैंने और मेरी दोस्त ने ऑनलाइन फॉर्म भर दिया।
ऑनलाइन एप्लीकेशन करने पर एक इंटरव्यू के लिए बुलाया गया, पर वो जॉब भी कॉल सेंटर में थी। जब हम इंटरव्यू देने गए तब हमारा इंटरव्यू भी साथ में ही हुआ। उसके बाद हमसे कुछ पैसे मांगे गए, लगभग 500। उस वक्त हमारे पास सिर्फ बस का किराया ही था। लेकिन नौकरी पक्की थी और सैलरी भी ठीकठाक थी तो हमने सोचा कुछ पैसे देकर क्या जायेगा। उन्होंने हमसे ट्रेंनिग के 1000 और मांगे, हम दोनों ने कहा हम कल लेकर आएंगे। हम अगले दिन चले गए, पैसे जमा कराये और जिस जगह ट्रेनिंग होगी हमे उस जगह का पता दिया गया। रविवार को ट्रेंनिग वाले जगह पर गए तो लगभग 200 से ज्यादा लोग थे। हमसे 1000 रूपये लिए और ट्रेंनिग शुरू की। काफी लोग वापस चले गए क्योकि उनको पैसे देकर काम करना सही नहीं लगा। पर हमे नौकरी की बहुत ज्यादा जरूरत थी।
ट्रेंनिग के बाद हमे ऑफ़िस का पता दिया गया जंहा हमारी जॉब की शुरुआत होनी थी। अगले दिन मैं और मेरी दोस्त समय से पहले उस ऑफ़िस में पहुंचे। हमारे साथ 18 लोग और थे। हमारी तीन दिन की ट्रेंनिग फिर से हुई और उसके बाद हमे कॉल अटेंड करने के लिए बिठा दिया गया। काफी कुछ सीखने को मिला इस ट्रेंनिग में। लेकिन उस ऑफिस में ऑफिस जैसा कुछ भी नहीं था, बाथरूम ऐसा था जैसे मानों 10 सालो से साफ नहीं किया हो।
तीन दिन ट्रेंनिग की के बाद हम लोगो को लॉगिन आई डी मिली। उसके बाद हम धीरे -धीरे कॉल अटेंड करने लगे। पहला दिन काफी भयानक रहा क्योंकि लगभग 300 से ज्यादा कॉल अटेंड करने से मेरे कानो की हालत खराब हो गयी थी। हमे 9 घंटे के काम में सिर्फ 30 मिनट का लंच ब्रेक मिलता था। हम ज्यादा शौचालय भी नहीं जा सकते थे, सर गुस्सा हो जाते क्योंकि वो कहते थे की एक मिनट का भी कॉल मिस नहीं कर सकते तुम लोग। और वो कैमरे से हर वक्त नजर रखते थे। कुछ होता आकर सब को इकट्ठा करके उन पर चिल्लाते थे।
मुझे अफ़सोस होता उनकी मानसिकता को देखकर क्योंकि वो लोगो को हर एक पल महसूस कराते की वो जब चाहे लोगो को नौकरी से निकाल सकते है। और उनका बार -बार ये कहना की मैं यंहा का बॉस हूँ, अगर मैं खुश तो आपलोग भी खुश रहोगे।
आये दिन लोगो का मज़ाक उड़ाना आम था वंहा पर। पर मैंने और मेरे कुछ साथियों ने जब जॉब लेटर माँगा तो उन्होंने एक प्रिंटआउट निकालकर हमसे हस्ताक्षर करवाया जिस पर लिखा था "नो टारगेट, नो सैलरी"। और शाम को एक सीनयर बस स्टैंड पर मिली। उसने बताया की वो दो महीने से काम कर रही है लेकिन उसे सैलरी नहीं मिली, इसलिए वो भी नौकरी छोड़ रही थी। मैंने वंहा पर सिर्फ कुछ ही दिन काम किया क्योंकि टारगेट पूरा होना ना मुमकिन था।
मैंने वंहा जितने भी दिन काम किये मैं भाप गयी की औरतो के लिए वहा कोई इज्जत नहीं है, क्योंकि उनका मानना था की शादी शुदा औरतो को या तो अपने पति या बच्चे की देखभाल करना होता है और इसलिए इतना छुट्टी करती है। एक सोचालय तक नहीं था जो हम इज़्ज़त से इस्तेमाल कर सकते। ऊपर से हर वक़्त गाली गलोच होता था। इसलिए मैंने खुद के फैसला लिया की सैलरी भले ही कम हो, लेकिन वंही काम करूंगी जंहा लड़कियों के लिए भी समान इज्जत हो।
हमारे समाज में लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है, चाहे वो घर हो स्कूल हो या फिर कार्यस्थल हो। मेरे जैसी बहुत सारी लड़किया अपनी ज़िन्दगी में कई मुश्किलों को पार कर के पढ़ाई करती है, घर से लड़ कर काम करने का निर्णय लेती है, और फिर कार्यस्थल में जा कर हार मान जाती हैं। क्योकि हम लड़ लड़ कर थक जाते है और निराश हो कर हार मान लेते हैं। जिस दिन सोच बदलेगी, समता और समानता के साथ लड़कियों को भी बढ़ावा मिलेगा।
मेरा सपना है की मैं भविष्य में वकील बनू ताकि मैं अपने समाज में सकारात्मक सोच के साथ बदलाव ला सकूं। और मैं जरूर बदलाव लाऊंगी।
- विनीता
(विनीता ने बाहर नौकरी की कोशिश करने के लिए एफएटी छोड़ा था। आज विनीता ने एफएटी में फिर से शामिल हो गयी है और एक कार्यक्रम ट्रेनी के रूप में काम कर रही है।)