लॉकडाउन में सुधा - Sudha in Lockdown
Since childhood Sudha liked to study. When she was in the 5th or 6th standard she would study for long hours. But from then onwards the pressure of work started increasing. Cooking at home, washing utensils, looking for the other members of the family, was all her responsibility. Soon she started distancing herself from her studies. Her father’s constant illness brought a financial crisis at home . So, Sudha along with her sister started going to the fields to work. She lived in a small village called Orap in Buxar district of Bihar.
One day Sudha’s mother was selected as a cook in Orap Primary High School. As their mother started cooking, both the sisters along with the other women of the neighbourhood started working on the fields of rich people. Their mother started earning Rs.50/- per day, because of which she again had a hope that her daughters can pursue their studies. She registered the name of both the daughters in the same school.
Sowing paddy, reaping, weeding and reaping of wheat or mustard took place from time to time; not the whole year round. The money was given only for sowing paddy, cereals were given for the rest of the work.
Sudha and her sister shared the field and the household work among themselves. They also went to school. Time started passing, both the sisters became wordly wise as they worked with the elders. So, along with the work they continued their studies.
When Sudha was in 10th standard her school was far from home and she often remained absent from school. She didn’t have enough money to join separate tuition classes. In her village tutorial classes, all the subjects were taught well but it was beyond her means to join. She started preparing for her exams on her own at home. She borrowed books from her friends to study. Earlier books were provided from the school. But in high school books are not given. Anyway, Sudha studied very hard day and night for her exams, with a lot of hope. But still her results were not very good. She remained unsuccessful. She was totally broken.
Sudha’s father consoled her and said not to lose hope and give up. He was an educated man. Sudha got motivated from his words. With the help of her mother she again gave up on her exams, but failed. She became worried and started wondering what will happen now, as she had failed twice.
Sudha saw a ray of hope as her mother’s salary kept increasing. Since last year her mother was earning Rs. 1000/- per day. The sisters were also earning Rs.100/- a day from the fields. All this was a big support for the poor family. Sudha was behind in studies from her friends because she had failed twice. But Sudha did not give up. She told her parents that she wanted to join the tuition classes and her mother immediately gave her Rs. 500/- for that.
There was a teacher in Sudha’s village who gave tuitions. She spoke to him and he agreed to teach her. Sudha took classes from him for 3 months, though she could pay fees only for 2 months and not the third. After giving her exams , in 2019, Sudha cleared her 10th boards with third division. She was very happy and wanted to continue her studies . Her mother supported her on every step and got her name registered in the Intermediate College.
Then there was news about a pandemic and a prevention lockdown was declared. During the lockdown Sudha’s mother’s school got closed. Her salary stopped well. It became difficult to make arrangements for ration at home. There was rice and pulses but in a very small quantity ,but no soap to bathe or wash with. Everybody’s problem arose. The news was constantly asking people to maintain cleanliness. Every time Sudha watched T.V. or heard the news she would be amazed .
How to keep things clean! Sudha saw no sign of cleanliness in her family. Soon after the lockdown somehow for a month she bore the expenses of her house with her wages. Then she sold a part of the wheat and rice from her household ration to buy surf and soap. In between, her father fell sick. One of the reasons was shortage of money and the other was and the other was unavailability of medicine. Then again, when it was time for reaping , she sold wheat to buy medicine for her father.
During this period, Sudha’s brother fell ill. He was diagnosed with water in his lungs. There was a shortage of money at home. Now Sudha was losing hope and strength. Her studies stopped. When there is not sufficient money for a brother's treatment, where would she get money for studies.
Sudha could not get admission for 11th and 12th in the Intermediate College. She enrolled herself in a private College. Government has waived off the fee but as she is in a private college she could not avail the benefits. In private college one form costs Rs.100/- whereas in government college it's for free. The pandemic has spread so much that everything is difficult. Only when the lockdown is over,will there be some employment and then something can be done.
During the lockdown somehow farming work is continuing but Sudha’s mother’s wages have stopped. Government said the employees will be given half salary. Which is also not coming. No one has raised voice for wages, and there are many families like Sudha’s whose financial position is deteriorating. But Sudha’s world is shattering. With great effort she has brought her world of education forward. To go from 11th to 12th no exam took place in the Intermediate College . Money is required for 12th standard. At present, Sudha has no money, what kind of lockdown was this!
सुधा का बचपन से ही पढ़ने में बहुत मन लगता था। जब वह 5 वीं या 6 ठी कक्षा में थी तब खूब देर देर तक पढ़ती थी। लेकिन उसी समय से उस पर काम का बोझ पड़ने लगा था। घर में खाना बनाना, बर्तन-बासन धोना और घर के लोगों की देखभाल करना उसके जिम्मे था। जल्दी ही सुधा की पढ़ाई से दूरियाँ बनने लगीं। उसके पापा अक्सर बीमार रहते थे। उनकी बीमारी के कारण घर में तंगी रहती थी। इसलिए सुधा अपनी बड़ी बहन के साथ खेतों में भी काम करती थी। उसका गाँव छोटा सा है - ओराप। बिहार के बक्सर जिले में पड़ता है ओराप।
एक दिन की बात है। सुधा की मम्मी को ओराप के प्राथमिक उच्च विद्यालय में खाना बनाने के काम के लिए चुना गया। उसकी मम्मी खाना बनाने लगीं। इस कारण दोनों बहनें अपने आसपास रहनेवाली औरतों के साथ बड़े लोगों के खेतों में काम करने जाने लगीं। जब माँ खाना बनाने के काम में लग गई तो वेतन एक दिन का ₹50 मिलने लगा था और तब माँ के दिल में एक उम्मीद जग गई कि मेरी बेटियाँ भी पढ़ेंगी। अपने उसी स्कूल में माँ ने दोनों बेटियों का नाम लिखवा दिया।
धान रोपना, काटना, निराई करना और गेहूँ या सरसों काटना आदि समय-समय पर होता था। हर समय नहीं होता है। उसमें भी नकद पैसा केवल धान रोपने का ही मिलता है। बाकी काम का अनाज ही मिलता है। सुधा और उसकी बहन खेतो का काम और घर का काम आपस में मिलकर करने लगीं। पढ़ने के लिए स्कूल जाती रहीं। समय बीतता गया दोनों बहनों की दुनियादारी की समझ भी बढ़ती गई क्योंकि वे बड़ों के साथ में काम करती थीं। काम के साथ उनकी पढ़ाई जारी थी।
जब 10 वीं कक्षा में सुधा गई तो स्कूल दूर था। उसकी क्लास में उपस्थिति कम होने लगी। उसके पास इतना पैसा नहीं होता था कि वह अलग से ट्यूशन कर सके। उसके गाँव में ट्यूशन में सब‘सबजेक्ट’ – विषय अच्छे से पढ़ाया जाता था। मगर यह सुधा के बस से बाहर था। वह घर पर अपने से परीक्षा की तैयारी कर रही थी। अपनी सहेलियाँ से किताब माँगकर पढ़ती थी। इसके पहले तो स्कूल से मुफ्त में किताब मिल जाती थी, लेकिन हाई स्कूल में किताब नहीं मिलती है। खैर सुधा ने परीक्षा देने के लिए रात दिन मेहनत की। वह बहुत ही उम्मीद के साथ पढ़ रही थी। फिर भी उसका रिजल्ट ठीक नहीं हुआ। वह असफल हो गई। बिल्कुल टूट गई।
तब सुधा के पापा ने उसको समझाया कि बेटी, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। वे पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। उनकी बात से सुधा को भरोसा मिला। उसने अपनी माँ की मदद से फिर से परीक्षा दी। लेकिन वह फिर से फेल हो गई। उसके मन में लगने लगा कि अब क्या होगा, अब तो वो दो बार फेल हो चुकी है।
सुधा को अपनी माँ की तनख्वाह में जो बढ़ोत्तरी हुई थी एक रोशनी की किरण दिखी। । उसकी माँ को पिछले साल से महीने का एक हजार मिलने लगा था। सुधा और उसकी बहन दोनों को भी खेत पर काम का एक दिन का ₹100 मिलने लगा। उस गरीब परिवार के लिए यह बड़ा सहारा था। सुधा अपनी सहेलियाँ से पढ़ाई में पीछे रह गई थी क्योंकि वह दो बार फेल हो चुकी थी। लेकिन सुधा ने हिम्मत नहीं हारी थी। उसने अपनी मम्मी और अपने पापा से कहा कि मैं ट्यूशन करना चाहती हूँ। उसकी माँ ने तुरत बात मान ली और ₹500 दे दिया।
सुधा के गाँव में एक मास्टर ट्यूशन पढ़ाते थे। नाते में वह दादा लगते थे। सुधा ने उनसे बात की और वे राजी हो गए कि हम तुम्हें पढ़ाएँगे। सुधा ने उनके पास 3 महीने अपनी परीक्षा की तैयारी की। हालाँकि उसने दो महीने का ही पैसा दिया था। और एक महीने का नहीं दे पाई थी। फिर परीक्षा देने के बाद 2019 में सुधा तीसरे नंबर (डिवीजन) पर 10 वीं पास कर गई। उसे बहुत ही खुशी महसूस हुई। उसकी इच्छा थी कि मैं आगे पढ़ाई करूँ। उसकी माँ हर कदम पर उसके साथ थी। माँ ने आगे पढ़ने के लिए इंटरमीडिएट कॉलेज में उसका नाम लिखवा दिया।
उसी समय महामारी का हल्ला हुआ और महामारी के डर से लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन के समय सुधा की माँ का स्कूल बंद हो गया था। पैसा आना बंद हो गया। घर में खाने के लिए राशन का बंदोबस्त करना मुश्किल हो रहा था। जो थोड़ा बहुत घर पर दाल-चावल था भी तो नहाने का साबुन–सर्फ़ नहीं था। सभी की परेशानियाँ बढ़ गई हैं। इस माहामारी के दौरान साफ-सफाई का ध्यान देने के लिए हर न्यूज़ में आता है। जब कभी सुधा टीवी न्यूज़ सुनती है या अखबार के समाचार सुनती है तो दंग रह जाती है।
साफ़-सफाई कैसे रखे ? सुधा को अपने परिवार में कुछ सफाई का स्वरूप ही नहीं दिखाई देता। लॉकडाउन के बाद किसी तरह एक महीने तक अपनी मजदूरी के पैसे से उसने घर चलाया। इसके बाद उसने घर के राशन में से चावल या गेहूँ ही बेचकर सर्फ़-साबुन खरीदा। उसी में उसके पापा की तबियत खराब हो गई। उसका एक कारण पैसे की कमी था तो दूसरा कारण था कि दवाई नहीं मिल पाती थी। जब फसल की कटाई होने लगी तो कुछ गेहूँ को बेचकर सुधा ने अपने पापा की दवाई के लिए पैसा इकट्ठा किया।
इसी बीच सुधा के भाई के पंजरी (फेफड़े) में पानी हो गया। तबियत बहुत ज़्यादा खराब हो गई थी। पैसा बहुत ही कम पड़ गया था। अब सुधा की हिम्मत जवाब दे रही थी। उसकी पढ़ाई रुक गई, पैसे की कमी के वजह से जहाँ भाई का अच्छा इलाज तो हो ही नहीं रहा था वहाँ पढ़ाई कहाँ से होगी!
11वीं-12वीं के लिए सरकारी इंटरमीडिएट कॉलेज में सुधा का नाम नहीं लिखा पाया था । वह प्राइवेट कॉलेज में थी । सरकार ने कॉलेज की फीस माफ की थी, लेकिन सुधा के कॉलेज के प्राइवेट होने के कारण उसको लाभ नहीं मिला। प्राइवेट कॉलेज में एक फार्म 100₹ का मिल रहा था। जबकि सरकारी कॉलेज में मुफ्त मिलता है। महामारी इस तरह फैल चुकी थी कि मुश्किल हो गई थी। लॉकडाउन टूटेगा और कोई रोजगार होगा तब न कुछ होगा !
इस लॉकडाउन के दौरान किसी तरह किसानी का काम हो रहां था। लेकिन सुधा के परिवार में उसकी माँ का वेतन बंद हो गया,। सरकार का कहना था नौकरी वाले को आधा वेतन दिया जाएगा।सही में वह भी नहीं मिल रहा है। पैसा के लिए आवाज किसी ने नहीं उठाया, और कई परिवार सुधा जैसे होंगे जिनकी हालत खराब हो गयी। लेकिन सुधा की दुनिया ही बिखर रही थी। वह बड़ी हिम्मत के साथ अपनी पढ़ाई की दुनिया को आगे लाई थी। इंटरमीडिएट कॉलेज में 11 वीं से 12 वीं में जाने के लिए कोई परीक्षा नहीं हुई थी। 12 वीं कक्षा में जाने के लिए पैसा लग्न था । अभी तो सुधा के पास एकदम पैसा नहीं था। यह कैसा लॉकडाउन था !