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Story of Corona Nahi, Karuna! Campaigner: Akansha, 17, Pune | कोरोना नहीं, करुणा! के कॉम्पैग्नर की कहानी: आकांक्षा, 17, पुणे

Story of Corona Nahi, Karuna! Campaigner: Akansha, 17, Pune | कोरोना नहीं, करुणा! के कॉम्पैग्नर की कहानी: आकांक्षा, 17, पुणे

Submitted by priyanka on 27 May 2020

I am 17 year old Akanksha, a resident of Benaras, but have been living in Pune with my family for 8 years. Right now I am in class 12, though school-colleges are all closed at present. Along with studies, I am also involved in the program on leadership of girls in FAT.

In Pune, I live in a community where people earn daily to feed themselves. And there are also many people who have come from different states in search of work, and in addition to food, they also meet house rent and family's personal needs from what they earn in a month. My family is also one of them. Dad is a rickshaw driver and mother runs a small shop.

Covid19 Pandemic - When I heard these words, took more information about how it is spreading, I became very nervous. Fear began to control the mind. There was an atmosphere of terror in my community. Panic started appearing everywhere, different rumors started spreading. I could not understand what to trust, what to explain to anyone. At the same time, mental stress also increased. Our livelihood related work stopped. Lockdown started. There was a shortage of different resources in the house, due to which tensions and quarrels started increasing. I was not able to calm myself.

Then I slowly started joining FAT's campaign called "Compassion, Not Corona!" When I started connecting there and started talking to others about the problems I was facing, my mind started to calm a bit. My stress was relieved and I was able to understand things in peace.

After joining the campaign, I understood compassion, the need for compassion right now, and started working on the layers of the campaign with the same spirit. I started from my home first. I was able to explain everything at home peacefully, arrange the essentials we needed in our home. Then I started a chat group with my friends, relatives, acquaintances and started a conversation with them. But there came a time when I realised just talking was not enough. Now people also need food to eat. Because all the people in our community had lost their livelihood sources. People were facing starvation.

I joined few girls from my community and four other communities to work with me. We started making a list of the families of girls living in different communities who need food supplies immediately. We started giving that list to different voluntary organizations that wanted to help people. We started talking to them. And then at different times we provided ration (basic food materials) to 145 needy families in 5 communities. While doing this, we were also taking precautions to protect ourselves from the corona virus.

When we were working in the community, we faced a lot of difficulties. People started shouting and quarreling for ration. In such an angry atmosphere, we girls were facing a lot of problems. But we girls stood firm, did not back down. We took the support of some people of the community and started solving problems. Along with distributing the ration, we girls were sharing the correct news and information on precautions from Covid19 in different communities. Through our phones, we were reaching out to the people of the community calm them as much as possible.

Thus I managed to get things done in our homes and at the same time form a girls group and bring a little help to my community. This journey started out from my fear. Now the fear is over and I am moving forward with fearless peace.

Description Hindi

मैं 17 साल की आकांक्षा, बनारस की रहिवासी हूँ पर 8 साल से परिवार के साथ पुणे में रह रही हूं। अभी मैं 12 कक्षा में हूँ, हालांकि की अभी स्कूल-कॉलेज सभी बंद है। पढ़ाई के साथ साथ मैं फैट में युवा लड़कियों के नेतृत्व पर कार्यक्रम में भी जुड़ी हूँ।

पुणे में मैं एक ऐसे समुदाय में रहती हूँ जहां लोग रोज कमाते है और रोज के रोज अपना पेट पालते है। और बहुत सारे ऐसे लोग भी रहते है जो कि अलग अलग राज्य से काम के तलाश में आये है, और महीने में जो कमाते हैं उस से खाना पीना के अलवावा घर भाड़ा और परिवार की निजी जरुरते भी पूरी करते है। मेरा परिवार भी उन्ही में से एक है। पिताजी रिक्शा ड्राइवर है और माताजी एक छोटी सी दुकान चलाती है।

कोविड19 महामारी - जब ये शब्द सुना, इसके बारे में और जानकारी लिया की ये क्या है कैसे फैल रहा है, तब मैं बहुत घबरा गई थी। डर मन में पैदा होने लगा। घर समुदाय में आतंक का माहौल हो गया। हर जगह अफरातफरी दिखने लगी, अलग अलग अफ़वाए फैलने लगी। क्या भरोसा करुँ, किसको क्या समझाऊं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। साथ ही साथ मानसिक तनाव भी बढ़ने लगा। जिन जरियो से घर चल रहा था वह सभी काम बंद हो गए। लॉकडन लगने लगे। घर में अलग अलग साधन सामग्री की कमी होने लगी, जिसके कारण तनाव, झगड़ा, यह सभी बढ़ने लगा। मैं खुद को समझा नहीं पा रही थी।

फिर मैंने धीरे-धीरे फैट के अभियान में जुड़ना शुरू किया जिसका नाम है " कोरोना नहीं, करुणा!" वहां जब जुड़ना शुरू किया और लोगो से समस्याओं पर बात करना शुरू किया, तब जाकर मन थोड़ा शांत हुआ। मेरा तनाव दूर हुआ और मैं शांति से चीजों को समझ पा रही थी ।

अभियान में जुड़ने के बाद मैं करुणा को समझ पाई, अभी करुणा की जरूरत को समझ पाई, और उसी भावना के साथ लेयर्स में काम करना शुरू किया। सबसे पहले अपने घर से शुरुवात किया। घर में शांति से समझाना, घर की जरूरी चीजों की व्यवस्था कर पाई। फिर अपने दोस्त, रिश्तेदार, परिचित से चैट समूह बनाकर उनके साथ बातचीत शुरू किया। पर एक समय आया जहा दिखा की सिर्फ बातचीत से कुछ नहीं होगा। अभी लोगो को खाने की भी जरूरत है। क्योंकि हमारे साथ-साथ समुदाय के सभी लोगो के काम बंद हो गए थे। लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे।

मैंने मेरे समुदाय के साथ और चार समुदाय की लड़कियों को अपने काम में शामिल किया। हमने अलग-अलग समुदाय में रह रही लड़कियाँ, जिनको आपातकालीन में खाने की जरूरत है, उनके परिवारों का लिस्ट बनाना शुरू किया। वह लिस्ट को हमने अलग-अलग स्वयं-सेवी संस्था, जो कि लोगो की मदद करना चाहती है, उनको देना शुरू किया। उनसे बातचीत करना शुरू किया। और फिर हमने अलग अलग समय में 5 समुदाय में 145 ज़रूरतमंद परिवारों को राशन दिलवाया। इस काम को करते हुए हम कोरोना वायरस से खुद की भी सुरक्षा को देख रहे थे।

जब हम समुदाय में काम कर रहे थे, मुश्किल भी बहुत आ रही थी। लोग राशन के लिए चड़ जा रहे थे, झगड़ा करना शुरू कर देते थे। ऐसे गुस्से के माहौल में हम लड़कियों को बहुत दिक्कतो का सामना करना पड़ रहा था। पर हम लड़कियाँ डटी रही, पीछे नहीं हटी। हमने समुदाय के कुछ लोगो का सहयोग लिया और दिक्कतों को हल करना शुरू किया। राशन बाटने के साथ-साथ हम लड़कियाँ अलग अलग समुदाय में सही समाचार और कोविद19 की सावधानियां साझा कर रही थी। अपने फोन के जरिये जितना हो सके समुदाय के लोग शांत कर रहे थे।

इस प्रकार मैंने अपने घरों में चीजों को संभाला और साथ ही साथ एक लड़कियों का गुट बनाते हुए अपने समुदाय में थोड़ा बहुत मदद भी पहुंचा पाई। एक सफ़र शुरू हुआ था मेरे डर से। अब डर ख़त्म हुआ और निडर शांति के साथ में आगे बढ़ रही हूँ।